कैसे ख़त्म होती हैं महामारियां?
हम कोविड-19 के रूप में एक ऐसी महामारी से जूझ रहे हैं जिसकी इतिहास में दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती है. लोगों की उम्मीद अब इस महामारी से निजात दिलाने वाली वैक्सीन पर टिकी है. लेकिन सच्चाई तो ये है कि ऐसी बहुत सी बीमारियां, जिनका प्रकोप हमारे पूर्वजों ने झेला था, उनके कारक वायरस और बैक्टीरिया आज भी हमारे बीच में मौजूद हैं.
दुनिया की कुछ सबसे बड़ी महामारियां कैसे ख़त्म हुईं ये जानने के लिए नीचे ↓ स्क्रॉल करें. इससे हमें पता चलेगा कि कोविड-19 के क़हर के बाद हमारा भविष्य कैसा होने वाला है.
ये जैस्मिन है
हमारी ही तरह उसके पूर्वज भी कई महामारियों के शिकार हुए होंगे
मिली-जुली नस्ल से ताल्लुक़ रखने वाली जैस्मिन को आप एक प्रतीक के तौर पर देखिए. हम जैस्मिन और उनके पूर्वजों के लंबे इतिहास के ज़रिए ये समझने की कोशिश करते हैं कि जैस्मिन के और हमारे आपके पूर्वजों ने किन किन महामारियों का प्रकोप झेला था. और जिनके लंबे सफ़र से गुज़रते हुए हम आज यहां इस मुकाम पर पहुंचे हैं.
ब्यूबोनिक प्लेग-तबाही लाने वाली वो महामारी जो अब भी हमारे बीच है
दुनिया ने ब्यूबोनिक प्लेग के तीन भयानक दौर देखे हैं. दस्तावेज़ों में दर्ज महामारी का पहला दौर 541 ईस्वी में आया था
आज से क़रीब साठ पीढ़ियों पहले, इतिहास के स्याह दौर में जैस्मिन के रिश्तेदारों को ब्यूनोबिनक प्लेग की महामारी के कई हमले झेलने पड़े थे
ब्यूबोनिक प्लेग की बीमारी एक बैक्टीरिया से होती है. ये बैक्टीरिया कीड़ों से चूहों तक तब पहुंचता है, जब इसके शिकार लोगों
के खांसने या छींकने के दौरान बूंदें बाहर निकलती हैं. एक ज़माने में इस महामारी ने भयंकर तबाही मचाई थी.
ब्यूबोनिक प्लेग के बैक्टीरिया का नाम है-येरसीनिया पेस्टिस. ये चूहों की कुछ ख़ास प्रजातियों के बीच फैलता है
ब्यूबोनिक प्लेग के कारण पिछले दो हज़ार वर्षों में लाखों लोगों की जान जा चुकी है
यूरोप में चौदहवीं सदी के दौरान (1346-1353) क़हर ढाने वाले ब्यूबोनिक प्लेग के प्रकोप को अब तक इस महामारी का सबसे भयंकर हमला कहा जाता है. इसे ब्लैक डेथ का नाम दिया गया था.
ब्यूबोनिक प्लेग लाखों लोगों की जान ले चुकी है. हालांकि अब इससे बहुत कम लोगों की मौत होती है
ब्यूबोनिक प्लेग से संक्रमित लोगों के शरीर की लिम्फ नोड यानी शरीर के अंदर मौजूद वो गांठें जो कीटाणुओं के हमले से लड़ती हैं, वो फूल जाती हैं. कीटाणुों के संक्रमण से सूज़न आने के बाद इन्हें ब्यूबोज़ कहा जाता है. सख़्ती से क्वारंटीन लागू करने और साफ़-सफ़ाई का बेहतर इंतज़ाम करने जैसे उपायों की मदद से इस महामारी पर क़ाबू पाया जा सका.
लंदन के इम्पीरियल कॉलेज में संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर स्टीवन राइली कहते हैं कि, ब्यूबोनिक प्लेग को क़ाबू करने में हमें सफलता मिलनी नामुमकिन ही थी, अगर हम ये नहीं समझ पाते कि इस बीमारी का संक्रमण कैसे फैलता है. जो बात प्रोफ़ेसर राइली कह रहे हैं, वो आज भी लागू होती है.
प्रोफ़ेसर राइली कहते हैं कि, 'जब आपको किसी बीमारी के फैलने के बारे में जानकारी हो जाती है. और आप उसे दूसरों से शेयर करते हैं, तो आप ऐसे क़दम उठा पाते हैं, जिससे बीमारी का संक्रमण कम किया जा सके.'
लेकिन, दुनिया में आज भी ब्यूबोनिक प्लेग के संक्रमण के मामले देखने को मिलते रहते हैं. जैसे कि इस साल जुलाई में इनर मंगोलिया में इस बीमारी के संक्रमण के मामले सामने आए थे. आज भी जैस्मिन को ये बीमारी हो सकती है.
लेकिन,राहत की बात ये है कि अब इसका संक्रमण उतने बड़े पैमाने पर नहीं फैलता, जैसा पहले होता था. और अब एंटीबायोटिक दवाओं से इसका इलाज किया जा सकता है.
चेचक-जिसके वायरस का विज्ञान ने ख़ात्मा कर दिया
चेचक के भयानक प्रकोप के कई दौर, इंसान देख चुका है. इस महामारी के क़हर का जो सबसे पुराना रिकॉर्ड हमें दस्तावेज़ों में मिलता है, वो वर्ष 1520 का है
इसके सैकड़ों बरस बाद जैस्मिन के पुरखों ने भी चेचक का तांडव देखा था
चेचक की बीमारी वैरिओला माइनर नाम के वायरस से होती है. इंसानियत के इतिहास में ये सबसे भयंकर विषाणुओं में से एक माना जाता है
इस वायरस से संक्रमित लोगों के शरीर पर छोटी छोटी फुंसियां हो जाती हैं, जिनमें मवाद भर जाता है. जब ये बीमारी अपने उरूज़ पर हुआ करती थी, तो हर दस संक्रमित लोगों में से एक की जान ले लेती थी.
चेचक की बीमारी इससे संक्रमित लोगों की नाक, मुंह या फिर फुंसियों से टपकने वाले मवाद से फैला करती है
चेचक के वायरस वैरियोला माइनर का कोई होस्ट नहीं होता, यानी ये किसी अन्य जीव के परजीवी नहीं होते
प्लेग की ही तरह चेचक की महामारी भी करोड़ों लोगों को मार चुकी है. अकेले बीसवीं सदी में ही इस बीमारी से 20 करोड़ से ज़्यादा लोगों की मौत होने का अंदाज़ा लगाया जाता है
चेचक से कम से कम 35 करोड़ लोगों की जान जा चुकी है. लेकिन अब इस बीमारी से किसी की मौत नहीं होती
लेकिन, शुक्र हो कि 1796 में ब्रिटेन के डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने इस बीमारी की वैक्सीन ईजाद कर ली. इसके अलावा, वैज्ञानिक समुदाय की अन्य कोशिशों के चलते चेचक की बीमारी पर पूरी तरह से क़ाबू पा लिया गया. लेकिन, इंसान को इस महामारी पर क़ाबू पाने में लगभग दो सदियां लग गईं. इसलिए...
मानवता के इतिहास में केवल चेचक की बीमारी ही ऐसा रोग है, जिस पर किसी दवा या वैक्सीन के ज़रिए पूरी तरह नियंत्रण पाया जा सका है. प्रोफेसर स्टीवन राइली, इसे मानवता की सबसे महान उपलब्धियों में से एक मानते हैं. इसकी तुलना, वो इंसान के चांद पर क़दम रखने की उपलब्धि से करते हैं.
प्रोफ़ेसर राइली कहते हैं कि, 'हम इसे सार्वजनिक हित में निवेश का सबसे बड़ा रिटर्न कह सकते हैं.' प्रोफ़ेसर राइली के कहने का अर्थ उस बचत से है, जो इस बीमारी के ख़ात्मे की वजह से दुनिया आज कर पा रही है
विज्ञान की इस उपलब्धि के चलते आज हमें और जैस्मिन को चेचक की बीमारी होने का कोई जोखिम नहीं है
जा (कॉलरा)-वो बीमारी जो आज भी कम आमदनी वाले देशों में महामारी का रूप ले लेती है
हैजा की बीमारी ने कई बार मानवता पर क़हर बरपाया है. इसका एक बड़ा प्रकोप साल 1817 में देखने को मिला था
तब, यानी आज से महज़ आठ पीढ़ियों पहले, जैस्मिन के पुरखों ने हैजे के ख़तरे का सामना किया था
कॉलरा अक्सर संक्रमित खाने या पीने के पानी से फैलता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, हैजा की बी
इन्फ्लुएंज़ा:हर मौसम में आने वाली चुनौती
तमाम महामारियों का दौर, 1800 के साल से 2010 तक
निश्चित रूप से जैस्मिन का ख़ानदान फ्लू की महामारियों के दौर से भी गुज़रा ही होगा. फ्लू की सबसे भयंकर महामारी, बीसवीं सदी की शुरुआत में फैली थी. जो शायद जैस्मिन के परदादा के ज़माने की बात है
1918 में फैली फ्लू की महामारी को कई बार स्पेनिश फ्लू भी कहा जाता है. ये मानवता के हालिया इतिहास की सबसे भयंकर महामारी थी. जिसमें एक अनुमान के मुताबिक़ पांच से दस करोड़ लोगों की मौत हुई थी
जैसे आज नए कोरोना वायरस के दौर में देखने को मिल रहा है, इसी तरह स्पेनिश फ्लू से निपटने के लिए भी लोगों को अलग रखा जाता था और क्वारंटीन किया जाता था, जिससे इस बीमारी का संक्रमण रोका जा सके
स्पेनिश फ्लू के लिए H1N1 वायरस ज़िम्मेदार था
1918 से 1920 के दौरान स्पेनिश फ्लू की महामारी के दो दौर आए थे. उसके बाद H1N1 वायरस का काफ़ी कमज़ोर प्रतिरूप ही इंसानों के बीच बचा रह गया था. ये आज भी हर साल इंसानों को संक्रमित करता है
स्पेनिश फ्लू की महामारी से दसियों लाख लोग मारे गए थे. और आज भी मौसमी सर्दी बुखार से लोगों की मौत हो जाती है
पर, स्पेनिश फ्लू के बाद भी फ्लू की बीमारी के कई और दौर गुज़रे
1968 में फैले हॉन्ग कॉन्ग फ्लू से दस लाख लोगों की जान गई थी. आज भी वो वायरस सीज़नल फ्लू के तौर पर हमारे बीच में है. इसी तरह स्वाइन फ्लू की बीमारी है-जो H1N1 वायरस के ही एक और रूप से फैलती है. वर्ष 2009 में दुनिया की 21 प्रतिशत आबादी स्वाइन फ्लू से संक्रमित हो गई थी.
प्रोफ़ेसर स्टीवन राइली कहते हैं कि आज भी फ्लू के वायरस में 'महामारी का रूप लेने का खतरा है' और जैस्मिन व हम जैसे लोगों पर फ्लू जैसे वायरस की महामारी के शिकार होने का ख़तरा मंडरा रहा है
इसके अलावा, हम सबके मौसमी फ्लू के शिकार होने का डर तो है ही. मौसमी फ्लू भी हर साल दुनिया भर में हज़ारों लोगों की जा ले लेता है
मारी कम से कम सात बार महामारी का रूप ले कर इंसानों पर क़हर बरपा चुकी है, जिसमें लाखों लोगों की जान गई.
ये बीमारी वाइब्रियो कोलेरी नाम के बैक्टीरिया से होती है, जो संक्रमित खाने या पानी में पाया जाता है
पश्चिमी देशों ने भले ही साफ़ सफ़ाई और सैनिटेशन की व्यवस्था में सुधार करके इस बीमारी पर क़ाबू पा लिया हो, लेकिन, कम आमदनी वाले बहुत से देशों में आज भी हैजा की बीमारी फैलना आम है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि विकासशील देशों में आज भी कॉलरा की वजह से हर साल एक लाख से लेकर, एक लाख चालीस हज़ार लोगों की जान जाती है
हैजे की बीमारीअब तक लाखों लोगों की जान ले चुकी है. आज भी इसके चलते हज़ारों लोगों की मौत हो जाती है
प्रोफ़ेसर स्टीवन राइली कहते हैं कि, 'आप पीने के साफ पानी की व्यवस्था करके ही इस बीमारी के दुष्चक्र से निकल सकते हैं. अगर आप पीने के पानी की सप्लाई की ठीक व्यवस्था नहीं करते, तो हैजा की बीमारी बड़ी तेज़ी से फैल सकती है.'
इसी वजह से, जैस्मिन जिस जगह को अपना घर कहती है, वहां पर अभी भी उसके कॉलरा के शिकार होने और जान गंवाने का ख़तरा है. भले ही इस बीमारी की वैक्सीन उपलब्ध है और इसका इलाज भी आसानी से हो जाता है
इन्फ्लुएंज़ा:हर मौसम में आने वाली चुनौती
तमाम महामारियों का दौर, 1800 के साल से 2010 तक
निश्चित रूप से जैस्मिन का ख़ानदान फ्लू की महामारियों के दौर से भी गुज़रा ही होगा. फ्लू की सबसे भयंकर महामारी, बीसवीं सदी की शुरुआत में फैली थी. जो शायद जैस्मिन के परदादा के ज़माने की बात है
1918 में फैली फ्लू की महामारी को कई बार स्पेनिश फ्लू भी कहा जाता है. ये मानवता के हालिया इतिहास की सबसे भयंकर महामारी थी. जिसमें एक अनुमान के मुताबिक़ पांच से दस करोड़ लोगों की मौत हुई थी
जैसे आज नए कोरोना वायरस के दौर में देखने को मिल रहा है, इसी तरह स्पेनिश फ्लू से निपटने के लिए भी लोगों को अलग रखा जाता था और क्वारंटीन किया जाता था, जिससे इस बीमारी का संक्रमण रोका जा सके
स्पेनिश फ्लू के लिए H1N1 वायरस ज़िम्मेदार था
1918 से 1920 के दौरान स्पेनिश फ्लू की महामारी के दो दौर आए थे. उसके बाद H1N1 वायरस का काफ़ी कमज़ोर प्रतिरूप ही इंसानों के बीच बचा रह गया था. ये आज भी हर साल इंसानों को संक्रमित करता है
स्पेनिश फ्लू की महामारी से दसियों लाख लोग मारे गए थे. और आज भी मौसमी सर्दी बुखार से लोगों की मौत हो जाती है
पर, स्पेनिश फ्लू के बाद भी फ्लू की बीमारी के कई और दौर गुज़रे
1968 में फैले हॉन्ग कॉन्ग फ्लू से दस लाख लोगों की जान गई थी. आज भी वो वायरस सीज़नल फ्लू के तौर पर हमारे बीच में है. इसी तरह स्वाइन फ्लू की बीमारी है-जो H1N1 वायरस के ही एक और रूप से फैलती है. वर्ष 2009 में दुनिया की 21 प्रतिशत आबादी स्वाइन फ्लू से संक्रमित हो गई थी.
प्रोफ़ेसर स्टीवन राइली कहते हैं कि आज भी फ्लू के वायरस में 'महामारी का रूप लेने का खतरा है' और जैस्मिन व हम जैसे लोगों पर फ्लू जैसे वायरस की महामारी के शिकार होने का ख़तरा मंडरा रहा है
इसके अलावा, हम सबके मौसमी फ्लू के शिकार होने का डर तो है ही. मौसमी फ्लू भी हर साल दुनिया भर में हज़ारों लोगों की जा ले लेता है
एचआईवी/एड्स-अभी भी क़हर ढा रही है ये महामारी
1981 से लेकर अब तक
तब, यानी आज से क़रीब चार दशक पहले जब एचआईवी/एड्स की बीमारी क़हर ढा रही थी, तब जैस्मिन के माता-पिता ने उस दौर को देखा था. बहुत से लोग एड्स को महामारी कहते हैं. लेकिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन इसे कुछ देशों में फैली बीमारी मानता है
ह्यूमन इम्युनो डेफिशिएंसी वायरस (HIV) शरीर से निकलने वाले द्रवों से फैलता है. एक अंदाज़े के मुताबिक़, अब तक इस वायरस से पूरी दुनिया में 3 करोड़ बीस लाख से अधिक लोगों की जान जा चुकी है
HIV इंसानों की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हमला करता है
प्रोफ़ेसर स्टीवन राइली कहते हैं कि एचआईवी को सबसे ख़राब स्थिति पैदा करने वाला वायरस कहा जा सकता है. इसकी वजह इस बीमारी से जकड़ने में लगने वाला समय और इससे मौत की दर का बहुत अधिक होना है. ये बीमारी बड़ी तेज़ी से फैलती है. इसका कारण ये है कि बहुत से लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें ये बीमारी अपना शिकार बना चुकी है
हालांकि जांच की तकनीक में तरक़्क़ी और विश्व स्तर पर इससे बचाव के लिए चलाए गए अभियानों का नतीजा ये हुआ है कि लोगों के यौन बर्ताव में बदलाव आया है. और ड्रग लेने वालों के लिए सुरक्षित इंजेक्शन उपलब्ध होने से इस वायरस से संक्रमण के मामलों में कमी आई है
इसके बावजूद, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, वर्ष 2019 में एड्स से लगभग 6 लाख 90 हज़ार लोगों की जान गई थी
एचआईवी/एड्स से करोड़ों लोगों की जान जा चुकी है. और इसका वायरस अभी भी हज़ारों लोगों को हर साल मौत के घाट उतार रहा है
हालांकि अब तक एड्स का कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है. फिर भी अगर जैस्मिन किसी ऐसे देश में रह रही होती, जहां स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी हों और उसे एंटी वायरल दवाएं आसानी से मिल जाएं, तो वो आज इस वायरस के दौर में भी लंबी और स्वस्थ ज़िंदगी बिता सकती है
लेकिन, अगर जैस्मिन किसी विकासशील देश में रहती है, और अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं और दवाओं की सहूलत से महरूम रहती है, तो उसे आज भी एड्स के वायरस से जान गंवाने का डर है
सार्स और मर्स-सबसे आसानी से क़ाबू किए गए कोरोना वायरस
2002-2003 और 2012 से लेकर अब तक
दो या तीन दशक बाद, ख़ुद जैस्मिन की ज़िंदगी में सार्स और मर्स वायरस का हमला हुआ
सेवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स)-कोरोना वायरस के संक्रमण से होने वाली पहली भयंकर स्थानीय महामारी. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 2002 से 2003 के दौरान इस बीमारी से 800 लोगों की जान गई थी
सार्स कोरोना वायरस जिसे सार्स-सीओवी (Sars-Cov) भी कहते हैं, उसकी पहचान वर्ष 2003 में हो सकी थी.
लेकिन, वर्ष 2003 के जुलाई महीने तक इस कोरोना वायरस के संक्रमण के किसी नए मामले की जानकारी सामने नहीं आई थी. इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एलान कर दिया कि ये वैश्विक महामारी अब ख़त्म हो चुकी है
इसके कुछ वर्षों बाद मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम यानी मर्स (Mers) वायरस का प्रकोप फैला था. ये भी एक कोरोना वायरस ही था. मर्स वायरस से दुनिया भर में 912 लोगों की जान गई थी. इसके संक्रमण के ज़्यादातर मामले अरब प्रायद्वीप में देखने को मिले थे
हालांकि ब्रिटेन जैसे देश में मर्स कोरोना वायरस (Mers-Cov) से संक्रमण की आशंका बेहद कम है. लेकिन, मध्य पूर्व के देशों में इसका ख़तरा आज भी काफ़ी अधिक है. मध्य पूर्व में अक्सर ऊंटों से इंसानों में इस कोरोना वायरस का संक्रमण हो जाता है
सार्स ने 800 से कुछ ही ज़्यादा लोगों की जान ली
तो, जैस्मिन को अभी भी मर्स कोरोना वायरस के संक्रमण का ख़तरा है. लेकिन, अधिकतर देशों में इस वायरस से संक्रमित होने की आशंका बहुत कम है
कोविड-19-अभूतपूर्व कोरोना वायरस
2019 से लेकर अब तक
अब जैस्मिन और ख़ुद हमारी ज़िंदगी के इस दौर में हम एक नए सार्स कोरोना वायरस का प्रकोप देख रहे हैं. इससे कोविड-19 नाम की सांस की बीमारी हो जाती है
इस नए कोरोना वायरस को वैज्ञानिक भाषा में सार्स-सीओवी-2 (Sars-Cov-2) का नाम दिया गया है. ये 2003 में फैले सार्स वायरस का ही एक नया रूप है और बीमारियों के विशेषज्ञ इस वायरस को अनूठा मानते हैं. क्योंकि इसके संक्रमण के लक्षण बहुत व्यापक होते हैं. किसी में इसके संक्रमण के कोई लक्षण नहीं दिखते, तो किसी में ये वायरस जानलेवा हो जाता है. सबसे अधिक चिंता की बात तो ये है कि जिन लोगों में इस वायरस से संक्रमण के लक्षण नहीं दिखते, या उनमें लक्षण दिखने से पहले ही, उनसे भी इसका प्रकोप फैलता है.
प्रोफ़ेसर राइली कहते हैं कि, 'इसी वजह से बहुत से देश इस महामारी के प्रकोप पर क़ाबू नहीं पा सके हैं'
सार्स-सीओवी-2 (Sars-Cov-2) वायरस 2003 में सामने आए सार्स वायरस का ही रिश्तेदार है
अब तक कोविड-19 महामारी से दुनिया भर में दस लाख से भी अधिक लोगों की जान जा चुकी है. आशंका है कि इस वायरस से मरने वालो की संख्या इससे कहीं ज़्यादा होने वाली है
ये नया कोरोना वायरस अब तक दस लाख से भी अधिक लोगों की जान ले चुका है
हालांकि, पूरी दुनिया में इस नए कोरोना वायरस के बचाव के टीके और अन्य इलाज की तलाश जारी है. लेकिन, दुनिया के ज़्यादातर लोगों के इस महामारी से संक्रमित होने का ख़तरा अभी मंडरा रहा है. और हमारी ही तरह जैस्मिन के ऊपर भी इस महामारी के शिकार होने का ख़तरा मंडरा रहा है
अब आगे क्या होगा?
तो, जो नया कोरोना वायरस इस समय पूरी दुनिया में लोगों को संक्रमित कर रहा है, वो वायरस या बैक्टीरिया से फैलने वाली महामारियों की लंबी कड़ी का सबसे नया हिस्सा है
मानवता के इतिहास में हमने देखा है कि बड़ी बड़ी महामारियां, करोड़ों लोगों की जान लेती आई हैं
नोट:जैसे जैसे समय के साथ दुनिया की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है, तो ऐतिहासिक दौर की महामारियों का प्रभाव आज से अधिक रहा होगा, क्योकि तब दुनिया की आबादी बहुत कम थीस्रोत:विश्व स्वास्थ्य संगठन का बीमारी नियंत्रण एवं बचाव केंद्र, अकादेमिक अनुसंधान पेपर, जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी
संक्रमण को लेकर ज़्यादा जानकारी, सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने वाले अभियान, इलाज के नए तरीक़े और टीकों के कारण ही इंसान अब से पहले तक भयंकर महामारियों पर क़ाबू पाता आया है
जो महामारी इस समय दुनिया में फैली है, उसका ख़ात्मा भी हम इन्हीं मिले जुले उपायों की मदद से कर पाएंगे
हालांकि, एक 'सुरक्षित और अत्यधिक असरदार टीके' से इस महामारी पर विराम लगाया जा सकेगा. लेकिन, प्रोफ़ेसर राइली कहते हैं कि हम सिर्फ़ इस यक़ीन के साथ हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे रह सकते.
इसके बजाय हमें इस महामारी से निपटने की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने के साथ साथ इसके साथ ही जीने की भी आदत डालनी पड़ सकती है
प्रोफ़ेसर स्टीवन राइली कहते हैं कि, 'अगले पांच वर्षों में निश्चित रूप से, या हो सकता है कि इससे भी पहले या तो हमारे पास नए कोरोना वायरस का बेहद असरदार टीके वाला हथियार होगा, जिसे पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जा सकेगा, या फिर हम इस वायरस से इतने लंबे समय तक मुक़ाबला कर चुके होंगे कि हमारे अंदर इससे लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो चुका होगा. जिसके बाद हम इसके छोटे छोटे प्रकोप के दौर देखने और इस वायरस के साथ ही जीने की आदत डाल लेंगे.'
और जैसा कि चेचक की महामारी के उन्मूलन ने साबित किया है कि जब दुनिया भर के वैज्ञानिक एक साथ आते हैं, तो वो मिलकर महान उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं
भले ही बिना लक्षण वाले लोगों से संक्रमण के कारण नए कोरोना वायरस की चुनौती ज़्यादा कठिन हो, लेकिन प्रोफ़ेसर राइली को उम्मीद है कि, जिस तरह दुनिया भर में वैज्ञानिक इसका इलाज खोजने में जुटे हैं, वो अभूतपूर्व है और अंत में हमें कामयाबी ज़रूर मिलेगी
प्रोफ़ेसर स्टीवन राइली कहते हैं कि, 'दुनिया में इससे पहले, इतने बड़े पैमाने पर कोई और साझा अभियान नहीं चलाया गया. उम्मीद यही है कि हम मिल जुलकर इस मक़सद में सफलता हासिल कर लेंगे.'
लेकिन, ये संघर्ष शायद हमें इस बात का एहसास भी कराएगा कि जिन कीटाणुओं या विषाणुओं ने इससे पहले मानवता पर क़हर बरपाया है, वो आज भी हमारे बीच हैं. भले ही उनके प्रकोप से पैदा हुए संकट ख़त्म हो गए हों, लेकिन वो वायरस या बैक्टीरिया और उनसे होने वाले संक्रमण अब भी हमारे बीच हैं
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