मंगलवार, 18 अगस्त 2020

कोरोना वैक्सीन कब तक आम लोगों को मिल पाएगी?


कोरोना वायरस की चपेट में दुनिया को आए आठ महीने हो चुके हैं. और इस बीमारी की चपेट में अब तक दो करोड़ 17 लाख लोग आ चुके हैं. सात लाख 75 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.


इन सबके बीच इस वायरस के ख़िलाफ़ सबसे बड़ी कामयाबी का एलान 11 अगस्त, 2020 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने किया था. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दावा किया है कि उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस की ऐसी वैक्सीन तैयार कर ली है जो कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ कारगर है.


पुतिन ने कहा कि इस टीके का इंसानों पर दो महीने तक परीक्षण किया गया और ये सभी सुरक्षा मानकों पर खरा उतरा है. इस वैक्सीन को रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी मंजूरी दे दी है.


रूस का पहली वैक्सीन बनाने का दावा


गेमलया इंस्टीट्यूट में विकसित इस वैक्सीन के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी बेटी को भी यह टीका लगा है. इस वैक्सीन को गेमलया इंस्टीट्यूट के साथ रूसी रक्षा मंत्रालय ने विकसित किया है. माना जा रहा है कि रूस में अब बड़े पैमाने पर लोगों को यह वैक्सीन देनी की शुरुआत होगी. रूसी मीडिया के मुताबिक़ 2021 में जनवरी महीने से पहले दूसरे देशों के लिए ये उपलब्ध हो सकेगी.


समाचार एजेंसी रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस में सितंबर से इस वैक्सीन स्पुतनिक v का अद्यौगिक उत्पादन शुरू किया जाएगा. इसी रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया भर के 20 देशों से इस वैक्सीन के एक अरब से ज़्यादा डोज के लिए अनुरोध रूस को मिल चुका है. रूस हर साल 50 करोड़ डोज बनाने की तैयारियों में जुटा है.


हालाँकि रूस ने जिस तेज़ी से कोरोना वैक्सीन विकसित करने का दावा किया है, उसको देखते हुए वैज्ञानिक जगत में इसको लेकर चिंताएँ भी जताई जा रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत दुनिया के कई देशों के वैज्ञानिक अब खुल कर इस बारे में कह रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि उसके पास अभी तक रूस के ज़रिए विकसित किए जा रहे कोरोना वैक्सीन के बारे में जानकारी नहीं है कि वो इसका मूल्यांकन करें.


पिछले हफ़्ते विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रूस से आग्रह किया था कि वो कोरोना के ख़िलाफ़ वैक्सीन बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय गाइड लाइन का पालन करे.


रूस के दावे पर शंका


विश्व स्वास्थ्य संगठन के तहत जिन छह वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल चल रहा हैं, उनमें रूस की वैक्सीन का ज़िक्र नहीं है. विश्व के दूसरे देश इसलिए भी रूस की वैक्सीन को लेकर थोड़े आशंकित हैं.


दरअसल जिस कोरोना वैक्सीन को बना लेने का दावा रूस कर रहा है, उसके पहले फेज़ का ट्रायल इसी साल जून में शुरू हुआ था.


रूस में विकसित इस वैक्सीन के ट्रायल के दौरान के सेफ़्टी डेटा अभी तक जारी नहीं किए गए हैं. इस वज़ह से दूसरे देशों के वैज्ञानिक ये स्टडी नहीं कर पाए हैं कि रूस का दावा कितना सही है.


रूस ने कोरोना के अपने टीके को लेकर उठी अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को ख़ारिज करते हुए इसे 'बिल्कुल बेबुनियाद' बताया है. जानकारों ने रूस के इतनी तेज़ी से टीका बना लेने के दावे पर संदेह जताया. जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन और अमरीका में वैज्ञानिकों ने इसे लेकर सतर्क रहने के लिए कहा.


इसके बाद रूस के स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराश्को ने रूसी समाचार एजेंसी इंटरफ़ैक्स से कहा, "ऐसा लगता है जैसे हमारे विदेशी साथियों को रूसी दवा के प्रतियोगिता में आगे रहने के फ़ायदे का अंदाज़ा हो गया है और वो ऐसी बातें कर रहे हैं जो कि बिल्कुल ही बेबुनियाद हैं."


अमरीका में देश के सबसे बड़े वायरस वैज्ञानिक डॉक्टर एंथनी फ़ाउची ने भी रूसी दावे पर शक जताया है. डॉक्टर फ़ाउची ने नेशनल जियोग्राफ़िक से कहा, "मैं उम्मीद करता हूँ कि रूसी लोगों ने निश्चित तौर पर परखा है कि ये टीका सुरक्षित और असरकारी है. मुझे पूरा संदेह है कि उन्होंने ये किया है."


रूस की इस वैक्सीन से इतर इस समय कोरोना महामारी के ख़िलाफ़ दुनिया भर में वैक्सीन विकसित की लगभग 23 परियोजनाओं पर काम चल रहा है. लेकिन इनमें से कुछ ही ट्रायल के तीसरे और अंतिम चरण में पहुँच पाई हैं और अभी तक किसी भी वैक्सीन के पूरी तरह से सफल होने का इंतज़ार ही किया जा रहा है. इनमें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, मॉडर्ना फार्मास्युटिकल्स, चीनी दवा कंपनी सिनोवैक बॉयोटेक के वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स अहम हैं.


ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन


ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैक्सीन प्रोजेक्ट ChAdOx1 में स्वीडन की फार्मा कंपनी एस्ट्राज़ेनेका भी शामिल है. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोविड वैक्सीन के ट्रायल का काम दुनिया के अलग-अलग देशों में चल रहा है.


मई के महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ़ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन ने ऑक्सफोर्ड के प्रोजेक्ट को सबसे एडवांस कोविड वैक्सीन कहा था. इंग्लैंड में अप्रैल के दौरान इस वैक्सीन प्रोजेक्ट के पहले और दूसरे चरण के ट्रायल का काम एक साथ पूरा किया गया.



ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के ट्रायल के इस चरण में क़रीब 50 हज़ार वॉलिंटियर्स के शामिल होने की संभावना है. दक्षिण अफ्रीका, अमरीका, ब्रिटेन और ब्राज़ील जैसे देश ट्रायल के अंतिम चरण में भाग ले रहे हैं.18 से 55 साल के एक हज़ार से ज़्यादा वॉलिंटियर्स पर किए गए ट्रायल में वैक्सीन की सुरक्षा और लोगों की प्रतिरोधक क्षमता का जायजा लिया गया था. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का ये वैक्सीन प्रोजेक्ट अब ट्रायल और डेवलपमेंट के तीसरे और अंतिम चरण में है.


भारत की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया ने भी ऑक्सफोर्ड कोविड वैक्सीन के भारत में इंसानों पर परीक्षण की तैयारी में है.


अगर अंतिम चरण के नतीजे भी सकारात्मक रहे, तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च टीम साल के आख़िर तक ब्रिटेन की नियामक संस्था 'मेडिसिंस एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी' (एमएचआरए) के पास रजिस्ट्रेशन के लिए साल के आख़िर तक आवेदन करेगी.


अमरीका की मॉडर्ना कोविड वैक्सीन


बीते 15 जुलाई को अमरीका में टेस्ट की जा रही कोविड-19 वैक्सीन से लोगों के इम्युन को वैसा ही फ़ायदा पहुंचा है जैसा कि वैज्ञानिकों को उम्मीद थी. हालांकि अभी इस वैक्सीन का अहम ट्रायल होना बाक़ी है.


अमरीका के शीर्ष विशेषज्ञ डॉ. एंथोनी फाउची ने समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस से कहा,''आप इसे कितना भी काट-छांट कर देखो तब भी ये एक अच्छी ख़बर है.' माना जा रहा है कि मॉडर्ना वैक्सीन प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण के शुरुआती हिस्से में है. मॉडर्ना ट्रायल के इस चरण में 30 हज़ार लोगों पर इस वैक्सीन का परीक्षण करेगी.


विशेषज्ञों का कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर किसी नए प्रोडक्ट का परीक्षण तभी किया जाता है, जब वो नियामक एजेंसियों के पास मंज़ूरी के लिए दाखिल किए जाने के आख़िरी दौर में हो. राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भी कोरोना वायरस के लिए इसे अब तक की सबसे तेज़ वैक्सीन प्रोजेक्ट करार दिया है.


मॉडर्ना के क्लीनिकल ट्रायल में अमरीका का नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेल्थ (एनआईएच) भी शामिल है. एनआईएच के निदेशक फ्रांसिस कोलिंस का कहना है कि साल 2020 के आख़िर तक कोरोना की वैक्सीन बना लेने का लक्ष्य रखा गया है.


मॉडर्ना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी स्टीफन बांसेल ने बताया, "मुझे उम्मीद है कि मॉडर्ना की वैक्सीन अमरीकी एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के मापदंडों पर 75 फ़ीसदी तक खरी उतरेगी. हमें उम्मीद है कि ट्रायल में हमारी वैक्सीन कोरोना को रोकने में कामयाब होगी और हम इससे महामारी को ख़त्म कर पाएँगे."


नेशनल इंस्टिट्यूट्स ऑफ़ हेल्थ और मोडेरना इंक में डॉ. फाउची के सहकर्मियों ने इस वैक्सीन को विकसित किया है. 27 जुलाई से इस वैक्सीन का सबसे अहम पड़ाव शुरू हो चुका है. तीस हज़ार लोगों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है और पता किया जाएगा कि क्या ये वैक्सीन वाक़ई कोविड-19 से मानव शरीर को बचा सकती है.


चीन भी है वैक्सीन के होड़ में


चीन की प्राइवेट फार्मा कंपनी सिनोवैक बॉयोटेक जिस कोविड वैक्सीन प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, वो ट्रायल के तीसरे और आख़िरी चरण में पहुँच चुकी है. सरकारी मंजूरी से पहले किसी वैक्सीन को इंसानों पर परीक्षण में खरा उतरना होता है.


मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड के बाद ट्रायल के अंतिम चरण में पहुँचने वाला ये दुनिया का तीसरा वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट है. CoronaVac नाम की इस वैक्सीन का फ़िलहाल ब्राज़ील में नौ हज़ार वॉलिंटियर्स पर ट्रायल चल रहा है.


भारत की दावेदारी- 'Covaxin'


15 अगस्त को लाल क़िले से अपने संबोधन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश में तीन कोरोना वैक्सीन के ट्रायल की बात कही है. इनमें से भारत में दो वैक्सीन पर काम चल रहा है. जबकि तीसरा वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में विकसित हुआ वैक्सीन है जिसे भारत में सीरम इंस्टीट्यूट मुहैया करा रहा है, हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि इस वैक्सीन के ट्रॉयल कहां कहां शुरू हुए हैं.


भारत बायोटैक इंटरनेशनल लिमिटेड की वैक्सीन का नाम कोवैक्सीन है. दूसरा वैक्सीन प्रोजेक्ट ज़ाइडस कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड का है.


कोवैक्सीन के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट में सरकारी एजेंसी इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी शामिल हैं.


इसके ह्यूमन ट्रायल के लिए देश भर में 12 संस्थाओं को चुना गया है, जिनमें रोहतक की पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़, हैदराबाद की निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ शामिल हैं.


आईसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने पिछले दिनों इन 12 संस्थाओं के प्रिंसिपल इन्वेस्टीगेटर्स से कोवैक्सीन ह्यूमन क्लीनिकल ट्रायल की रफ़्तार में तेज़ी लाने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि ये शीर्ष प्राथमिकता वाली परियोजनाओं में से एक है, जिस पर सरकार के शीर्ष स्तर से निगरानी रखी जा रही है.


लेकिन हेल्थ एक्सपर्ट्स इस पर सवाल उठा रहे हैं कि वैक्सीन तैयार करने के लिए जितने समय की ज़रूरत होती है और जिन प्रक्रियाओं से गुजरना होता है, क्या उनका पालन किया गया है.


वैसे मोटे तौर पर अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर जल्दी से वैक्सीन मिला भी तो भी इस साल के अंत तक ही मिल पाएगा. हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख कई बार वैक्सीन बनाए जाने को लेकर नाउम्मीदी भी ज़ाहिर कर चुके हैं.


कोरोना वायरस की वैक्सीन इतनी अहम क्यों है?


आशंका यह है कि दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा कोरोना वायरस की चपेट में आ सकता है. ऐसे में वैक्सीन इन लोगों को कोरोना वायरस की चपेट में आने से बचा सकता है.


कोरोना वायरस की वैक्सीन बन जाने से महामारी एक झटके में ख़त्म तो नहीं होगी लेकिन तब लॉकडाउन का हटाया जाना ख़तरनाक नहीं होगा और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रावधानों में ढिलाई मिलेगी.


वैक्सीन बनाने को लेकर अब तक कितनी प्रगति हुई है?


विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि 31 दिसंबर 2019 को हुई थी. जिस तेज़ी से वायरस फैला उसे देखते हुए 30 जनवरी 2020 को इसे पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया गया.


लेकिन शुरुआती वक्त में इस वायरस के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी और इस कारण इसका इलाज भी जल्द नहीं मिल पाया. विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई देशों में डॉक्टर इससे निपटने के लिए वैक्सीन बनाने में जुटे हैं लेकिन सवाल यही है कि आख़िर इसके तैयार होने में कितना वक़्त लगेगा?







 











अमरीकी फार्मा कंपनी 'फ़ाइज़र' और जर्मन कंपनी 'बॉयोएनटेक' मिलकर एक कोविड वैक्सीन प्रोजेक्ट BNT162b2 पर काम कर रही हैं. दोनों कंपनियों ने एक साझा बयान जारी कर बताया है कि वैक्सीन प्रोजेक्ट इंसानों पर परीक्षण के आख़िरी चरण में पहुँच गई है. अगर ये परीक्षण सफल रहे, तो अक्तूबर के आख़िर तक वे सरकारी मंज़ूरी के लिए आवेदन दे सकेंगे. कंपनी की योजना साल 2020 के आख़िर तक वैक्सीन की 10 करोड़ और साल 2021 के आख़िर तक 1.3 अरब खुराक की आपूर्ति सुनिश्चित करने की है.


इसका अलावा शीर्ष दवा कंपनियां सनफई और जीएसके ने भी वैक्सीन विकसित करने के लिए आपस में तालमेल किया है. ऑस्ट्रेलिया में भी दो संभावित वैक्सीन का नेवलों पर प्रयोग शुरू हुआ है. माना जा रहा है कि इसका इंसानों पर ट्रायल अगले साल तक शुरू हो पाएगा.


जापानी की मेडिकल स्टार्टअप एंजेस ने कहा है कि उसने कोरोना वायरस की संभावित वैक्सीन का इंसानों पर परीक्षण शुरू कर दिया है. जापान में इस तरह का यह पहला परीक्षण है. कंपनी ने कहा है कि ओसाका सिटी यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में अगले साल 31 जुलाई तक ट्रायल जारी रहेंगे.


लेकिन कोई यह नहीं जानता है कि इनमें से कोई सी कोशिश कारगर होगी.


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