सोमवार, 1 जून 2020

लॉकडाउन में दी गई ढील, अब संक्रमण के ख़िलाफ़ जारी जंग का क्या होगा?


"हमारी हालत अभी से ख़राब है. अस्पतालों में मरीज़ ही मरीज़ हैं. कल जब और संक्रमण फैलेगा तो न जाने क्या होगा..."


ये चिंता उस शख़्स की है जो बीते दो महीनों से एक स्वास्थ्यकर्मी के रूप में कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं.


लेकिन इन सभी चिंताओं के बीच भारत सरकार ने जून महीने की पहली तारीख़ यानी सोमवार से लॉकडाउन हटाना शुरू कर दिया है.


इस महीने के पहले हफ़्ते में सड़कों पर आवाजाही सामान्य होने के बाद दूसरे हफ़्ते से मंदिर-मस्जिदों और शॉपिंग मॉल जैसी जगहों पर भीड़ जुटने की संभावनाएं प्रबल संभावनाएं हैं. हालांकि, कंटेनमेंट ज़ोन निर्धारित की गई जगहों पर पाबंदियां जारी रहेंगी.


लेकिन एक तरह से जब आप ये ख़बर पढ़ रहे हैं तब तक भारत के कोने कोने में लोग अपने अपने घरों से निकलकर कामकाज में जुट गए हैं.


व्यापारी अपनी दुकानों पर हफ़्तों से जमी धूल झाड़कर काम काज शुरू कर रहे हैं.


और नौकरी पेशा लोग ऑफ़िस जाने की तैयारियों में जुट गए हैं.


लेकिन इसी बीच जब लाखों प्रवासी मज़दूरों/कामगारों ने अपने जीवन की सबसे दुखद: यातनाओं को जिया.


तब कोरोना वायरस ने धीरे धीरे एक एक करके भारत में लगभग दो लाख लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है और पाँच हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान ले ली है.


हवाई जहाज़ पर चढ़कर आए इस वायरस के अब भारत के गाँवों तक पहुंचने से जुड़ी ख़बरें आ रही हैं.


लगातार दो महीनों तक कोरोना के ख़िलाफ़ जंग लड़ने के बाद कोरोना वॉरियर्स के मानसिक और शारीरिक रूप से थकान का सामना करने के संकेत भी मिल रहे हैं.


लेकिन अब तक कोरोना का पीक नहीं आया है. और कहा जा रहा है कि ये पीक जुलाई के अंतिम सप्ताह में आ सकता है.


ऐसे में सवाल उठता है कि भारत के शहरों से लेकर गाँवों तक कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ रहा सरकारी और निजी संस्थाओं का तंत्र आगामी चुनौतियों के लिए कितना तैयार है.


किस हाल में हैं प्रशासन


वुहान से आए भारतीय छात्रों का विमान भारत में उतरने के बाद से स्वास्थ्य मंत्रालय से लेकर ज़िला स्तर की संस्थाएं अभूतपूर्व ढंग से काम कर रही हैं.


बीते दो महीनों में ऐसी तमाम ख़बरें आई हैं जिनमें अधिकारियों और स्वास्थ्यकर्मियों ने अपनी जान जोख़िम में डालते कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए दिन रात काम किया है.


कई महिला अधिकारियों ने बच्चे को जन्म देने के कुछ दिनों बाद ही काम करना शुरू कर दिया तो कुछ अधिकारियों ने अपने नवजात बच्चे को हफ़्तों तक बिना देखे काम किया.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा सीट वाराणसी में कोरोना के ख़िलाफ़ जंग में वॉर रूम संभाल रहे आईएएस अधिकारी गौरांग राठी ऐसे ही तमाम अधिकारियों में शामिल हैं.


बीबीसी से बात करते हुए गौरांग बताते हैं कि उनकी टीम आने वाले दिनों के लिए कितने तैयार हैं.


वे कहते हैं, "कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ जंग में वॉर रूम शुरु हुए दो महीने पूरे हो गए हैं. इन दो महीनों में ज़िले के शीर्ष अधिकारियों समेत हर विभाग के कर्मचारियों ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में कोई कसर नहीं छोड़ी है."


"बीते दो महीनों में एक भी पल ऐसा नहीं आया कि जब हम या हमारे कर्मचारियों ने एक पल भी आराम किया हो. क्योंकि लगातार हर दिन नई चुनौतियां सामने आती रहीं. पहले शहर को इस आपदा के लिए तैयार करना था, फिर लोगों के बीच जागरुकता फैलाना और फिर प्रवासी श्रमिकों के आने जाने से जुड़ी चुनौतियां आ गईं. कई बार ऐसे मौके आए जब हमें अपने साथियों का मनोबल बढ़ाने के लिए भी काम करना पड़ा क्योंकि ये बेहद ज़रूरी था."


गौरांग राठी से पूछा गया कि लॉकडाउन खुलने से नए मामले बढ़ने की चुनौती के लिए वे कितने तैयार हैं


इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, "ये बात सही है कि कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और ऐसे में लॉकडाउन को खोला जाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण है लेकिन हमने आम लोगों के बीच साफ सफाई से जुड़ी समझ विकसित की है. ऐसे में अब जनता के ऊपर ये ज़िम्मेदारी है कि वे दो महीने से जारी साफ़ सफाई के नियमों का पालन करें. क्योंकि कोरोना वायरस एक ऐसी चीज़ है जिसके ख़िलाफ़ जीत मिल जुलकर ही हासिल की जा सकती है."


वाराणसी भारत के उन तमाम शहरों जैसा ही है जहां पर मंदिरों और मस्जिदों में भारी भीड़ जमा होती है.


ऐसे में देशभर के ज़िलों में प्रशासनिक अधिकारियों के लिए आगे के दिन चुनौतीपूर्ण होना लाज़मी है.


बीते दो महीनों में दिल्ली समेत मुंबई और कई जगहों पर पुलिसकर्मी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं.


महाराष्ट्र में अब तक 25 पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है. और 2211 पुलिसकर्मी इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं.


हालिया मामले में तो एक पुलिसकर्मी की मौत कोविड केयर सेंटर से डिस्चार्ज किए जाने के कुछ घंटों बाद हुई है.


वहीं, दिल्ली में अब तक 445 पुलिसकर्मी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं. इसके साथ ही तीन पुलिसकर्मियों की मौत हो चुकी है.


किस हाल में हैं स्वास्थ्य तंत्र


स्वास्थ्य तंत्र की बात करें तो देश भर में स्वास्थ्यकर्मियों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की ख़बरें आ रही हैं.


देश के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल एम्स में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या 206 के पार पहुंच चुकी है.


दिल्ली के दूसरे बड़े अस्पताल जैसे एलएनजेपी के निदेशक का कोरोना वायरस से संक्रमित होना बताता है कि अस्पताल किस तरह एक तरह से संक्रमण के हॉटस्पॉट बन रहे हैं.


कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ों के इलाज़ में दिन रात गुज़ार रहे स्वास्थ्यकर्मी आने वाले दिनों को लेकर चिंतित नज़र आते हैं.


एक बड़े अस्पताल में काम कर रहे राजकुमार (नाम बदला गया है) बताते हैं कि अस्पतालों की हालत ख़राब है.


वे कहते हैं, "कोई कुछ भी कह सकता है, कितने भी बड़े बड़े दावे कर सकता है. लेकिन हम स्वास्थ्यकर्मियों से कोई पूछे तब पता चलेगा कि अस्पतालों के अंदर का हाल क्या है. अगर आप मुझसे ये कहते कि मेरी बात मेरे नाम से जाएगी तो मैं भी कहता कि सब कुछ बढ़िया है. लेकिन सच पूछें तो हाल ये है कि हम सब कुछ ट्राई कर रहे हैं, ये कुछ कुछ अंधेरे में तीर चलाने जैसा है. सरकार कभी कहती है कि ये गाइडलाइन फॉलो करो तो कभी कुछ और."


"आप ये पूछ रहे थे कि कितने बिस्तर उपलब्ध हैं तो हाल ये है कि बिस्तर जुटाने के लिए गाइडलाइन बदली जा रही है. पहले 14 दिन का क्वारंटीन हुआ करता था. तीन टेस्ट होते थे. आख़िरी टेस्ट में सैंपल निगेटिव आने पर व्यक्ति को घर जाने दिया जाता है. अब पहले टेस्ट के बाद अगर व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं तो उसे घर भेज दिया जाता है."


"इस तरह बात कैसे बनेगी, अब अगर इनमें से कोई व्यक्ति अपने घर पहुंचकर संक्रमण फैला देता है तो क्या करेंगे? कोई इस सवाल का जवाब नहीं दे रहा है. इसी वजह से सरकार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करना बंद कर दिया है."


"अस्पतालों के अंदर प्रशासक अपना गुस्सा डॉक्टरों पर निकाल रहे हैं, डॉक्टर नर्सिंग स्टाफ़ पर निकाल रहे हैं और नर्सिंग स्टाफ़ अपने से नीचे वालों पर गुस्सा निकाल रहे हैं. क्योंकि दो महीने से लोग लगातार काम करके मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह थक चुके हैं."


"किसी को शायद इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि पीपीई सूट में काम करना कितना मुश्किल होता है. इसमें आप छह घंटे से ज़्यादा समय तक बिना पानी पिए और खाए लगातार काम करते हैं. बढ़ती गर्मी के साथ काम करना और मुश्किल होता जा रहा है. क्योंकि आप पानी पिएं या नहीं, गर्मी की वजह से आप पीपीई किट के अंदर पसीने से नहाते रहते हैं. कई लोगों का वजन गिर गया है कि बीते दो महीनों में."


"अब जबकि लॉकडाउन खुल रहा है जो कि देश के लिहाज़ से ठीक भी है. लेकिन अस्पतालों का आने वाले दिनों का क्या हाल होगा, ये बस हम ही जानते हैं."


लॉकडाउन खुलने से पहले ही मुंबई के अस्पतालों में व्यवस्था चरमराती नज़र आ रही है.


हाल ही में सामने आई कई मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया है कि मुंबई के अस्पतालों की हालत कितनी ख़राब है.


ब्लूमबर्ग में प्रकाशित एक रिपोर्ट मुंबई के अस्पतालों की हालत का विस्तार से ज़िक्र करती है.


इस रिपोर्ट में उस वीडियो का भी ज़िक्र है जिसमें मुंबई के लोक नायक अस्पताल के वॉर्ड में ज़िंदा कोविड मरीज़ों के साथ बिस्तरों पर लाशें रखी हुई दिखाई गई हैं.


ये मामला सामने आने के बाद अस्पताल के डीन को बदल दिया गया है.


इसके साथ ही किंग एडवर्ड स्मारक अस्पताल की गैलरी में लाशों के पड़े होने की तस्वीरें सामने आई थीं.


छोटे शहर और ग्रामीण इलाक़ों का हाल बुरा


प्रवासी श्रमिकों के गाँवों में पहुंचने के बाद ये आशंका जताई जा रही है कि इस वायरस ने ग्रामीण इलाकों तक भी अपनी पहुंच बना ली है.


उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह चुके हैं कि मुंबई से लौटने वाले 75 फीसदी श्रमिक और दिल्ली से लौटने वाले 50 फीसदी श्रमिक कोरोना वायरस से संक्रमित हैं.


उत्तर प्रदेश सरकार के मुताबिक़, कम से कम 25 लाख श्रमिक दूसरे राज्यों से वापस उत्तर प्रदेश लौटे हैं.


इसके साथ ही कई प्रवासी श्रमिक पैदल चलते हुए अपने गाँवों तक पहुंच चुके हैं.


ऐसे में अगर कहीं गाँवों में कोरोना वायरस फैलता है तो सरकार के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं.


 


 


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