कर्नाटक में शुरुआत में कोरोना केसों में एक समान पैटर्न देखने को मिला. वे युवा जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम करते थे या विदेश से बिजनेस टूर से लौटे थे, वे पॉजिटिव पाए गए.
- कर्नाटक में हुई थी कोरोना से देश की पहली मौत, अभी 4000 से ज्यादा केस
- मुंबई में 44,000 और दिल्ली में 24,000 की तुलना में बेंगलुरु में सिर्फ 419 केस
कर्नाटक में Covid-19 महामारी की जल्दी शुरुआत हुई, देश में बीमारी से पहली मौत राज्य से ही रिपोर्ट हुई. लेकिन अभी तक इस राज्य ने महामारी पर नियंत्रण की दिशा में अप्रत्याशित तौर पर अच्छा प्रदर्शन किया है, खास तौर पर बेंगलुरु में. लेकिन यह राज्य आत्मसंतुष्ट होने का जोखिम नहीं उठा सकता, क्योंकि केस संख्या में हालिया बढ़ोतरी चिंता का विषय है.
कर्नाटक भारत का आठवां सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है. 2011 की जनगणना के आधार पर 6 करोड़ 10 लाख से ज्यादा लोग कर्नाटक में रहते हैं. राज्य की लगभग 40 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है.
कर्नाटक के शुरुआती Covid-19 केसों में एक समान पैटर्न देखने को मिला-वो युवा जो बहु-राष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम करते थे और/या विदेश से बिजनेस टूर से लौटे थे, उन्होंने पॉजिटिव टेस्ट दिया. उनसे संक्रमण परिवार के निकट सदस्यों, और कुछ अन्य मामलों में कार्यस्थल के सहयोगियों तक फैला.
भारत की पहली Covid-19 मौत कर्नाटक से ही रिपोर्ट हुई थी और यह शुरुआती दिनों के डर और भ्रम की मिसाल बन गई. 76 साल का एक शख्स सऊदी अरब से लौटा था. उसे जिले में, यहां तक कि राज्यों की सीमा तक, अस्पतालों में इधर से उधर किया जाता रहा. उसकी कलबुर्गी ले जाते वक्त रास्ते में मौत हो गई. इस सबके बीच कई लोगों के संक्रमित होने की वो वजह बन गया.
शुरुआती तेज बढ़ोतरी के बाद, कर्नाटक में केसों की वृद्धि दर कम हो गई है. 4,000 से अधिक केसों के साथ, मौजूदा स्थिति में कर्नाटक 10वां सर्वाधिक केसों वाला राज्य है. लेकिन आबादी के अनुपात में केसों का बोझ राज्य के लिए और भी नीचा है.
अहम शहरीकृत राज्यों में, सिर्फ केरल में ही आबादी के हिसाब से केसों का बोझ कर्नाटक से नीचे है. कर्नाटक में हर दस लाख आबादी पर 62 केस हैं. केरल में ये आंकड़ा 43 का है. जबकि राष्ट्रीय औसत 165 का है.
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देश में पहली मौत रिपोर्ट करने के बावजूद कर्नाटक में मौतों का बोझ भी अपेक्षाकृत नीचे बना हुआ है. यही बात इसकी केस मृत्यु दर (CFR) के लिए भी है. कर्नाटक में हर दस लाख की आबादी पर 0.8 मौतें दर्ज की गईं. वही CFR 1.3 प्रतिशत रही. राष्ट्रीय औसत हर दस लाख की आबादी पर 4.6 मौत और 2.8 प्रतिशत CFR का है.
कर्नाटक की सफलता की कहानी विशेष रूप से बेंगलुरु में दिखाई देती है. बेंगलुरु अकेला देश का बड़ा शहर है जो सर्वाधिक प्रभावित शहरों में शामिल नहीं है. आबादी के हिसाब से भारत का चौथा सबसे बड़ा शहर होने के बावजूद बेंगलुरु में सिर्फ 419 पुष्ट केस हैं. वहीं मुंबई में 44,000 और दिल्ली में 24,000 के आसपास केस रिपोर्ट हो चुके हैं.
कर्नाटक की कामयाबी के एक हिस्से के लिए कांटैक्ट ट्रेसिंग को श्रेय दिया जा सकता है, जो किसी भी अन्य अहम राज्य से बेहतर है. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के मुताबिक, 30 अप्रैल तक कर्नाटक ने पॉजिटिव केसों के 25,000 से अधिक कांटैक्स का टेस्ट किया था. सिर्फ दो राज्यों ने ही कर्नाटक से अधिक कांटैक्ट्स का टेस्ट किया था और वो हैं- महाराष्ट्र और तमिलनाडु.
तर यह था कि कर्नाटक के केसों का बोझ महाराष्ट्र और तमिलनाडु की तुलना में बहुत कम था- अप्रैल के अंत तक कर्नाटक में सिर्फ 535 पुष्ट केस सामने आए थे, जबकि उस वक्त तक महाराष्ट्र में 14,000 से अधिक और तमिलनाडु में 2,100 से अधिक केस थे. कर्नाटक के लिए जो कारगर रहा वो था इसने हर पुष्ट केस पर 47 से अधिक कांटैक्ट्स को ट्रेस कर उनकी टेस्टिंग की थी जबकि राष्ट्रीय औसत हर पुष्ट केस पर 6 लोगों का ही था.
हालांकि, कर्नाटक आत्मसंतुष्ट होने का जोखिम नहीं उठा सकता. इसके केसों के दोगुना होने का समय राष्ट्रीय औसत 15 दिनों की तुलना में खासा कम है. यहां केसों की संख्या दोगुना होने में एक हफ्ते का ही वक्त लग रहा है. साथ ही यहां केसों में नई बढ़ोतरी की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
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