सोमवार, 15 जून 2020

भारत के खिलाफ नफरत नेपाल के प्रधानमंत्री ओली की मजबूरी क्यों?


नेपाल ने आनन-फानन में नए नक्शे को लेकर संविधान संशोधन पर कदम आगे बढ़ा दिया है. इस नए नक्शे में नेपाल ने भारत की तीन इलाकों कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल किया गया है जिन पर वह अपना दावा पेश करता है. हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि नेपाल की सरकार राष्ट्रवाद के नाम पर सस्ती लोकप्रियता के चक्कर में ऐसा कदम उठा रही है जो उसे महंगा पड़ सकता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि नेपाल और भारत के पास सीमा विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत के अलावा कोई विकल्प नहीं है.


नेपाल की सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों ने शनिवार को नए नक्शे को संवैधानिक मान्यता देने के लिए संसद में मतदान किया. बता दें कि 8 मई को भारत ने कैलाश मानसरोवर रोड लिंक का उद्घाटन किया था जो लिपुलेख से होकर गुजरती है. नेपाल ने इसे लेकर आपत्ति जताई थी. हालांकि, नेपाल की आपत्ति खारिज करते हुए भारत ने कहा था कि सड़क का निर्माण पूरी तरह से भारतीय भू-भाग में ही हुआ है. भारत ने ये भी कहा था कि नेपाल से वार्ता के जरिए मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की जाएगी. हालांकि, नेपाल ने बिना इंतजार किए देश के नए नक्शे को जारी कर दिया.


नेपाल के इस कदम पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने शनिवार को कहा, कृत्रिम रूप से भू-भाग पर विस्तार करने का दावा ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है और इसलिए ये पूरी तरह से अमान्य है. इससे सीमा विवाद को लेकर वार्ता कराने की कोशिशों का भी उल्लंघन हुआ है.


आर्थिक डेली एडिटर प्रह्लाद रिजाल ने कहा, कालापानी को शामिल करते हुए नेपाल का नया नक्शा जारी करना और लोकसभा में इसे समर्थन देना ये दिखाता है कि केपी ओली की सरकार राष्ट्रवाद की आड़ में सस्ती लोकप्रियता बटोरने की कोशिश कर रही है. रिजाल ने चेतावनी दी कि ओली सरकार के इस कदम से नेपाल और भारत के बीच विवाद गहरा सकता है और इसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं. उन्होंने कहा, ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि ये कदम बीजिंग के संकेत पर उठाया गया है. अगर ऐसा है तो बहुत ही दुखद है. बता दें कि भारत की सेना प्रमुख मनोज नरवणे ने भी चीन का नाम लिए बिना कहा था कि नेपाल किसी और के इशारे पर विरोध कर रहा है.


एक्सपर्ट ने कहा कि प्रधानमंत्री ओली का ये कदम उनके और उनके प्रतिद्वंद्वी के बीच सत्ता को लेकर मचे घमासान से भी जुड़ा है. केपी ओली को अपनी ही पार्टी के भीतर अध्यक्ष पुष्प कमल दहल प्रचंड से भी चुनौती मिल रही है. पार्टी के भीतर अपना आधिपत्य बनाए रखने के लिए ओली खुद को ज्यादा राष्ट्रवादी साबित करना चाहते हैं.



रिजाल ने कहा, नेपाल अपनी 75 फीसदी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत से आयात करता है. ऐसा लगता है कि सरकार ने अपने कदम के दूरगामी नतीजों के बारे में नहीं सोचा. उन्होंने कहा, दोनों देशों के संबंध खराब होने पर हमारी अर्थव्यवस्था के लिए भी मुश्किल पैदा हो सकती है. हम पांच साल पहले के वाकये से सबक सीख सकते हैं जब चीन बहुत ज्यादा मददगार साबित नहीं हुआ था. चीन मीठे शब्द बोलने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है और जहां तक अर्थव्यवस्था की बात है तो चीन भारत का विकल्प नहीं बन सकता है.


राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ वकील दिनेश त्रिपाठी ने कहा कि दोनों देशों के बीच वार्ता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने कहा, हमें सीमा विवाद सुलझाने के लिए मोल-भाव करने की जरूरत है और नेपाल को परिपक्व कूटनीति दिखाने की. त्रिपाठी ने कहा, नेपाल की संसद में नए नक्शे को समर्थन मिलने के बाद दोनों देशों के संबंधों में भरोसे में कमी आई है और अब दोनों देशों को कूटनीति के जरिए इसे वापस हासिल करना होगा. हमें भारत में दोस्ताना रवैये वाले लोगों तक पहुंचना चाहिए और भारत सरकार को बातचीत की मेज पर लाने की कोशिश करनी चाहिए.


नेपाल में 2013 से 2017 के बीच भारतीय राजदूत रहे रंजीत राय ने कहा, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने घरेलू राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नए नक्शे पर आगे बढ़ने का फैसला किया. राय ने कहा कि अगर दोनों देश बातचीत के लिए तैयार भी हो जाते तो वह ये कदम जरूर उठाते. भारत विरोधी भावनाओं के खेल के दम पर ही वह चुनाव जीते और उन्हें लगता है कि घरेलू राजनीति में बढ़ रहे दबाव के बीच उन्हें इससे फिर से मदद मिलेगी.


उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि ओली का ये कदम उनकी असुरक्षा की भावना से ही जुड़ा हुआ है क्योंकि नेपाल में इस वक्त उनकी स्थिति बेहद कमजोर हो गई है. आर्थिक मोर्चे पर सरकार की नाकामी और कोरोना संकट को लेकर लोग सड़कों पर उतर आए हैं. ऐसी भी अफवाहें चल रही हैं कि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में बदलाव हो सकता है. ऐसी परिस्थितियों में ये ओली के लिए एक लाइफलाइन की तरह है.


राय ने कहा कि नेपाल का संवैधानिक संशोधन का फैसला सीमा विवाद के मुद्दे को और उलझा देगा. उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि इससे रिश्ते सुधरने के बजाय और बिगड़ेंगे. मैं इस बात से सहमत हूं कि नेपाल की तरफ से नवंबर महीने से वार्ता की मांग हो रही थी लेकिन किसी ना किसी वजह से वार्ता टलती रही.


काठमांडू पोस्ट में राजनीतिक विश्लेषक अतुल के ठाकुर ने लिखा है, शीर्ष नेतृत्व ने जो अपरिपक्वता दिखाई है, उससे सिर्फ सार्वजनिक संसाधनों पर पलने वाले लोगों का ही भला होगा लेकिन इससे आम लोगों के हितों को नुकसान पहुंचेगा. भारत और नेपाल को द्विपक्षीय संबंधों में भरोसा जगाना होगा और बातचीत करनी होगी. मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए काठमांडू की सड़कों पर या न्यूजरूम के लिए कोई जगह नहीं छोड़नी चाहिए.


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