चीन के वुहान और शंघाई में चीनी, इतालवी और अमेरिकी शोधकर्ताओं की ओर से की गई स्टडी अभी उन जगहों पर स्कूल बंद रखने का ही समर्थन करती है, जहां अभी तक कोविड कर्व को समतल नहीं किया जा सका है.
- दुनिया भर में 1.2 अरब से अधिक स्कूली छात्र लॉकडाउन से प्रभावित
- कई देश अपने स्कूलों को धीरे-धीरे खोलने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं
दुनिया भर में कोविड-19 पॉजिटिव मरीजों में बच्चों की संख्या बहुत कम है. लेकिन नई स्टडी ने आगाह किया है कि लॉकडाउन को खत्म या ढीला करने वाले देशों को अब भी स्कूल फिर से खोलने से बचना चाहिए, क्योंकि बिना लक्षण वाले लेकिन संक्रमित युवा संक्रमण की चेन को भारी वायरल लोड के साथ जारी रख सकते हैं.
यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में 1.2 अरब से अधिक स्कूली छात्र लॉकडाउन से प्रभावित हुए हैं. यह दुनिया में कुल एनरोल्ड छात्रों का 72.4 प्रतिशत है.
दक्षिण कोरिया, चीन, इजराइल, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड और जर्मनी जैसे देश अपने स्कूलों को धीरे-धीरे खोलने की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. इसके लिए सोशल डिस्टेंसिंग और अनिवार्य मास्क जैसी सावधानियों का सख्ती से पालन किया जाएगा.
भारत में केंद्रीय और राज्य शिक्षा अधिकारियों के पास कक्षाएं फिर से शुरू करने का तत्काल कोई प्लान नहीं है. हालांकि, कई अन्य देश बच्चों को कक्षाओं में फिर से वापस लाने के लिए कदम उठा रहे हैं.
साइंस जर्नल में पिछले हफ्ते छपी एक स्टडी में कहा गया कि हालांकि बच्चों में बालिगों की तुलना में एक तिहाई ही वायरस से संक्रमित होने के चांस होते हैं, लेकिन बच्चों में बालिगों की तुलना में तीन गुणा अधिक दूसरों के कॉन्टेक्ट में आने की संभावना होती है. स्टडी में बताया गया है कि इसका मतलब संक्रमण फैलाने के तीन गुना ज्यादा मौके होते हैं.
स्टडी के मुताबिक, हालांकि पूर्व सक्रियता दिखाकर स्कूल बंद करने से संक्रमण के फैलाव को नहीं रोका जा सकता, लेकिन इससे 40-60 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं और महामारी को टाले रखा जा सकता है.
मेथेडोलॉजी
यह स्टडी इस साल 1 फरवरी से 10 फरवरी के बीच की गई. तब चीन में कोविड-19 का फैलाव शिखर पर था और कई कड़े उपाय किए गए थे. शोध में वुहान में 636 प्रतिभागियों के 1,245 कॉन्टैक्ट्स और शंघाई में 557 प्रतिभागियों के 1,296 कॉन्टैक्ट्स का विश्लेषण किया गया.
जर्मन और ब्रिटिश शोधकर्ताओं की ओर से की गई दूसरी स्टडी में सभी आयु वर्गों के लोगों का सर्वेक्षण किया गया. इसमें पाया गया कि जिन बच्चों का कोविड-19 का टेस्ट पॉजिटिव आया, उनमें संक्रमित बालिगों के जितना ही वायरल लोड होता है.
शोध में कहा गया है, "विभिन्न आयु वर्ग के रोगियों में वायरल लोड को लेकर देखा गया कि बच्चों सहित किसी भी आयु वर्ग में कोई खास अंतर नहीं है."
स्टडी में चेताया गया, "विशेष रूप से ये आंकड़े बताते हैं कि बहुत युवाओं में वायरल लोड बालिगों की तुलना में बहुत अलग नहीं होते हैं. इन नतीजों के आधार पर, हम मौजूदा स्थिति में स्कूलों और किंडरगार्टन्स के असीमित तौर पर दोबारा खोले जाने को लेकर आगाह करते हैं. बच्चे भी बालिगों की तरह संक्रामक हो सकते हैं.
सैंपल साइज
शोध में आयु से जुड़ाव और Covid-19 वायरल लोड की जांच के लिए 3,712 मरीजों का मूल्यांकन किया गया.
बच्चों की संक्रमण दर
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 0-13 वर्ष के बीच के बच्चे दुनिया भर में सबसे कम संक्रमित आयु वर्ग के हैं. इस आयुवर्ग की कोविड-19 के कुल मरीजों में हिस्सेदारी सिर्फ 2 प्रतिशत है. 13 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए संक्रमण का प्रतिशत थोड़ा बढ़कर लगभग 5 प्रतिशत हो जाता है. यह अमेरिका के CDC के आंकड़ों से भी पुष्ट होता है. इनके मुताबिक, 2 अप्रैल तक बच्चों से जुड़े Covid-19 के कुल 2,572 केसों को देखा गया. इन केसों में 0 से 18 वर्ष तक के मरीज शामिल रहे. संक्रमित लोगों की औसत आयु 11 वर्ष थी.
लगभग 32 प्रतिशत केस 15 से 17 वर्ष यानि किशोर वर्ग से थे. इसके बाद 27 प्रतिशत हिस्सेदारी 10 से 14 साल आयुवर्ग के बच्चों की रही. 15 प्रतिशत केस 1 साल से नीचे की आयु के थे. वहीं 5 से 9 साल के बीच के आयुवर्ग की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत रही.
बच्चों में पाए जाने वाले आम लक्षण बुखार, खांसी और सांस की तकलीफ थे. कुछ में मांसपेशियों में दर्द, गले में खराश, सिरदर्द और दस्त जैसे लक्षण भी दिखाई दिए, लेकिन अधिकतर कम उम्र के मरीज बिना लक्षण वाले थे, जिनसे उनकी पहचान में कठिनाई हो रही थी. अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति में, केवल 2 प्रतिशत आईसीयू में भर्ती हुए थे. इनमें से अधिकतर 1 वर्ष से नीचे की उम्र के थे.
महामारी के बाद की दुनिया में स्कूलों की तस्वीर भी अलग हो जाने की उम्मीद की जा रही है, जहां सोशल डिस्टेंसिंग कक्षाएं आयोजित करने के तरीके में अहम भूमिका निभाएगी. लॉकडाउन के मानसिक और सामाजिक प्रभावों की बहुत ज्यादा अनदेखी नहीं की जा सकती, क्योंकि बच्चे आमतौर पर स्कूलों में सामाजिक और एक-दूसरे से व्यवहार के कौशल सीखते हैं.
भारत को किस पर जोर देना चाहिए?
भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने 2 मई को आजतक/इंडिया टुडे टीवी से कहा, "स्कूलों को फिर से खोलने का निर्णय स्थिति और टास्क फोर्स की सिफारिशों पर आधारित होगा."
Covid-19 रिस्पॉन्स में शामिल टास्क फोर्स को हाथ में उपलब्ध डेटा और अनुसंधान के हिसाब से फैसले लेने चाहिए. इसके लिए अन्य देशों को फॉलो न किया जाए क्योंकि वहां की स्थिति और परिवेश अलग हैं. इसका कारण ये भी है कि भारत में कुछ मापदंड वैसे सामने नहीं आए जैसा कि वैश्विक औसत है.
भारत में मृत्यु दर
उदाहरण के लिए, भारत में अब तक Covid-19 की मौतों का आयु-वार ब्रेकअप वैश्विक पैटर्न के मुताबिक नहीं है. अन्य जगह 60 से अधिक आयु वाले वर्गों में सबसे अधिक मौतें हुई हैं, लेकिन भारत में 60 साल से कम उम्र के आयु वर्ग में लगभग 45 प्रतिशत मौत रिपोर्ट हुई हैं. दूसरी बात, भारत में संक्रमित मरीजों का आयु-वार ब्रेकअप यह दर्शाता है कि बड़ी आबादी वाले कई राज्यों में 0-13 वर्ष के ब्रैकेट में मरीजों की संख्या खासी है.
मिसाल के लिए तमिलनाडु में 6 मई तक कुल 4,829 केस में से 254 केस 0-12 साल के आयु वर्ग से हैं. यह 5.2 प्रतिशत है, जो इस आयु वर्ग के लिए वैश्विक औसत 2 प्रतिशत से कहीं ज्यादा है.
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