शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

कोरोना वायरस की त्रासदी से बिखरने लगा है पूरा यूरोप...









भारत में कोरोनावायरस के मामले



2301

कुल मामले




157

जो स्वस्थ हो गए




56

मौतें



स्रोतः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय


13: 36 IST को अपडेट किया गया









कोरोना वायरस संकट ने यूरोपीय संघ की सार्थकता को लेकर सवाल छेड़ दिया है - कि ईयू का मतलब क्या है?


निश्चित तौर पर ये संयुक्त राज्य अमरीका की तरह एक संयुक्त राज्य यूरोप नहीं नज़र आ रहा. बल्कि उल्टा ही नज़र आ रहा है.


अभी जो दिखता है उससे लगता है कि यूरोप का हर देश अपनी जनता, उनकी नौकरियाँ, उनकी सेहत और अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर फ़िक्रमंद है.


मगर यूरोपीय एकता के हिमायती समझे जाने वाले जर्मनी जैसे यूरोप के अमीर देशों ने अभी तक इटली और स्पेन जैसे आर्थिक मुश्किलों में घिरे देशों की मदद के बारे में चुप्पी साध रखी है.


बर्लिन की दीवार गिरने के बाद पश्चिम जर्मनी ने पूर्वी जर्मनी को लेकर जो ज़िम्मेदारी निभाई थी, उसका अभी नामोनिशान नहीं नज़र आता.


पर नज़र क्यों आए - आप पूछ सकते हैं. जर्मनी एक अलग राष्ट्र है, वो ख़ुद अपनी मु्श्किलों में घिरा है.


और ठीक इसी वजह से ये प्रश्न पैदा होता है - कि फिर यूरोपीय संघ का मतलब क्या है?


इटली की शिकायत


जर्मनी ने इटली को मास्क भेजे हैं, उसने फ़्रांस और इटली के कोरोना संक्रमित रोगियों को अपने अस्पतालों में भी भर्ती किया है.


मगर उसने साथ ही इटली, स्पेन, फ़्रांस और दूसरे देशों की ये अपील ठुकरा दी कि कोरोना वायरस की वजह से जो कर्ज़ जन्मा है उसे बराबर बाँटा जाए.


इटली में कइयों को लगता है, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. ठीक वैसा ही जैसा यूरो संकट और प्रवासी संकट के समय हुआ था.


इस सप्ताह इटली के कुछ मेयरों और राजनेताओं ने मिलकर जर्मनी के एक अख़बार में एक पूरा पन्ना ख़रीद कर जर्मनी को याद दिलाया कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी से कभी भी उसके कर्ज़ों को चुकता करने के लिए नहीं कहा गया था.


उन्होंने साथ ही एक अन्य अमीर देश नीदरलैंड्स की भी मदद ना करने के लिए आलोचना की.


इटली में 81 वर्ष के एक पारिवारिक मित्र ने मुझसे इस हफ्ते फ़ोन कर पूछा, "कात्या, तुम्हें तो यूरोप की काफ़ी समझ है, है ना? फिर वे हमारी मदद क्यों नहीं कर रहे?"


इटली में सोशल मीडिया में ईयू के झंडे को जलाने के वीडियो वायरल हो रहे हैं.


और यूरोपीय एकता पर संदेह जताने वाले पूर्व उप-प्रधानमंत्री मैटियो साल्विनी जैसे राजनेता इस संकट का राजनीतिक लाभ लेने की उम्मीद कर रहे हैं.


गुरुवार को उन्होंने ट्वीट किया, "हमें यूरोप और यूरोपीय संघ की दोबारा समीक्षा करनी होगी और उसमें इटली की भूमिका क्या होगी, इसकी भी. उसने हमारी ज़रा भी मदद नहीं की है." मगर वास्तव में ऐसा नहीं है.



शर्तों को लेकर मतभेद


यूरोपीय कमिशन ने कोरोना संक्रमण की वजह से प्रभावित कामगारों की मदद के लिए 100 अरब यूरो की एक योजना प्रस्तावित की है.


उसने इटली को मेडिकल सामानों के लिए पाँच करोड़ यूरो देने का भी एलान किया है.


यूरोपीय केंद्रीय बैंक ने भी यूरो मुद्रा वाले देशों में अर्थव्यवस्था को मज़बूती देने के लिए 750 अरब यूरो का पैकेज देने का वादा किया है.


मगर यूरोपीय देश निजी तौर पर क्या कर रहे हैं - क्या वे मिलकर मदद करने के बारे में सोचेंगे? फ़्रांस एकजुटता का उपदेश देता है.


गुरुवार को फ़्रांस के आर्थिक मंत्री ब्रूनो ला मेयर ने ऐलान किया कि यूरोपीय संघ किसी समाधान के लिए जर्मनी का मुँह देखता है.


मैंने जर्मनी के कई लोगों से बात की है, राजनेताओं से भी और दूसरे लोगों से भी. उन्हें ऐसा लगता है जैसे फ़्रांस उनसे कह रहा हो कि जर्मनी सारे यूरोप का कोरोना संकट का भार उठा ले.


पर जर्मनी चाहता है कि कुछ उसी तरह की व्यवस्था हो जैसा कि 2008 के वित्तीय संकट के बाद हुआ था, जब यूरोप की स्थिरता के लिए एक बेलआउट फ़ंड बनाया गया था.


मगर ऑस्ट्रिया और नीदरलैंड ये ज़ोर देते हैं कि इसमें मदद के साथ-साथ सख़्त शर्तें भी लगाई जाएँ.


लेकिन तब इटली ये शिकायत करता है कि शर्तों का मतलब इटली को सज़ा देने के जैसा होगा जबकि ये संकट उसकी अपनी सरकार के ग़लत ख़र्चों के कारण नहीं आया बल्कि ये एक ख़तरनाक वायरस का नतीजा है.


समझा जा रहा है कि अगले मंगलवार को यूरोपीय देशों की बैठक तक शायद कोई समाधान निकल जाए, मगर अभी तो यूरोपीय देशों में एक कड़वाहट दिखाई दे रही है.



क्या कर सकता है यूरोपीय संघ


फिर क्या यूरोपीय कमिशन कुछ नहीं कर सकता, क्या वो यूरोप की सरकारों को आपस में सहयोग के लिए बाध्य नहीं कर सकता?


जवाब है - नहीं.


कमिशन की प्रमुख अर्सला वॉन डर लेन दोहराती रहती हैं कि यूरोप के संकट का एकमात्र प्रभावी समाधान आपसी सहयोग, लचक और सबसे ऊपर, एकजुटता से निकलेगा.


मगर यूरोपीय देश अपने फ़ैसले ख़ुद लेते हैं.


यूरोपीय देशों के बीच आवागमन के लिए हुआ शेनगेन समझौता फ़िलहाल तार-तार हो चुका है.


जर्मनी और ऑस्ट्रिया ने, बेल्जियम और फ़्रांस ने, फ़्रांस और इटली ने और ऐसे ही कई देशों ने अपनी सीमाओं से एक-दूसरे के यहाँ आने जाने पर रोक लगाई हुई है.


फ़िनलैंड विचार कर रहा है कि क्या उसे पहली बार स्वीडन के साथ अपनी सीमा को पूरी तरह बंद कर देना चाहिए क्योंकि सीमावर्ती इलाकों में बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आए हैं.


अब इससे स्वीडन के मेडिकल सिस्टम को धक्का लगेगा जो कि फ़िनलैंड से आने वाले चिकित्साकर्मियों पर काफ़ी निर्भर रहता है.


अर्सला वॉन डर लेन ने यूरोप के भीतर इस तरह की सीमाओं को बंद करने की जगह पूरे यूरोप में बाहर से लोगों के आने पर रोक लगाने का प्रस्ताव किया था.


मगर इन देशों की सरकारों ने पहले अपना-अपना देश बचाने का फ़ैसला किया.


फिर इसके अलावा हंगरी का मामला अलग है.



हंगरी में सत्ता हड़पते प्रधानमंत्री


हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बन अपनी अनुदारवादी लोकतंत्र की नीति के लिए जाने जाते हैं.


इस हफ़्ते उन्होंने लोकतंत्र से भी पल्ला झाड़ लिया और संसद से एक क़ानून पास करवा लिया जिसके बाद वो जब चाहें तब तक सत्ता में रह सकते हैं.


यूरोपीय कमिशन ने बस नाम के लिए सख़्त समझी जाने वाली प्रतिक्रिया दी और इस घटना पर चिंता जताते हुए कहा कि यूरोपीय देशों को ये स्पष्ट करना चाहिए कि कोरोना वायरस के वक़्त बने क़ानून स्थायी नहीं हैं.


लेकिन हंगरी में जो हुआ वो यूरोपीय यूनियन के संस्थापक मूल्यों की अवहेलना करता है जिनमें लोकतंत्र और क़ानून का शासन की बात की गई थी.


कमिशन चाहे तो हंगरी को दिया जाने वाला पैसा रोक सकता है जो एक सख़्त संदेश होगा.


इससे ये भी संदेश जाएगा कि यूरोपीय संघ केवल कुछ देशो का यूनियन नहीं है, बल्कि एक विवाह के जैसा है जो मूल्यों और एकजुटता पर टिका होता है, जो बुरे समय में भी अटूट रहता है, और अच्छे समय में भी.


कोरोना वायरस संकट से सचमुच ये प्रश्न उठना वाजिब हो गया है - कि आख़िर यूरोपीय संघ का मतलब क्या है?


 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें